भारत का सबसे बड़ा मिल्क ब्रांड अमूल, क्यों वर्ल्ड कप में इंडिया को छोड़ कर विदेशों में स्पोंसरशिप कर रहा है?
नई दिल्ली: भारत का सबसे बड़ा मिल्क ब्रांड Amul, जिसे देशभर में अपनी गुणवत्तापूर्ण दूध और डेयरी उत्पादों के लिए जाना जाता है, इस बार T20 वर्ल्ड कप में अपने देश को छोड़ कर यूएसए, श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका जैसी टीमों को स्पोंसर क्यों किया ? क्या Amul गद्दार और देशद्रोही है ? यह फैसला Amul ने क्यों लिया और इसके पीछे की बिजनेस स्ट्रेटेजी क्या है, इसे समझना बेहद जरूरी है।
Sponsorship क्यों जरुरी हैं ?
इससे पहले कि हम Amul के इस फैसले पर चर्चा करें, हमें समझना होगा कि स्पॉन्सरशिप का खेल में कितना महत्व है। क्रिकेट के लिए स्पॉन्सरशिप का मतलब केवल खेल के समर्थन से नहीं, बल्कि ब्रांड की जागरूकता और प्रमोशन के नए अवसरों से भी है। आज जब क्रिकेटर्स के लिए यह एक प्रोफेशन है, तो बड़ी कंपनियों के लिए यह एक शानदार मार्केटिंग टूल बन गया है।
जो दिखेगा वही बिकेगा, और हम अच्छे से जानते हैं कि दुनिया भर में सबसे ज्यादा क्रिकेट को पसंद करने वाले भारत के ही हैं, हमारे देश में हर घर में तीन में से दो लोग क्रिकेट खेलते हैं और देखते भी हैं, यही कारण है की स्पॉन्सरशिप के दौरान कम पैसे में करोडो लोगों को एक साथ अपना ब्रांड आसानी से दिखाया जा सकता है|
Amul ने की भारत से गद्दारी ?
हमारे हमारे देश में क्रिकेट प्रेमियों की संख्या इतनी ज्यादा है कि अन्य किसी देश के मुकाबले में सबसे ज्यादा भारत के लोग क्रिकेट देखते हैं और खेलते हैं, यही कारण है कि करोड़ों लोगों द्वारा क्रिकेट देखे जाने के कारण हमारे देश के क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई(BCCI) दुनिया का सबसे आमिर और बड़ा क्रिकेट बोर्ड हैं, जिसका कुल संपत्ति 18,700 करोड रुपए है और दुनिया के दूसरे सबसे बड़े क्रिकेट बोर्ड ऑस्ट्रेलिया से यह 28 गुना ज्यादा है|
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Amul भारत में क्यों नही करता Sponsorship ?
दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड होने के चलते बीसीसीआई यह अच्छे से जानता है कि उसका असली मूल्य क्या है क्योंकि अगर वह किसी भी ब्रांड को स्पांसर करता है तो उसके उसका मुनाफा रातों रात बढ़ने लगता है, क्योंकि यह एक बार में करोड़ों लोगों को दिखता है और “जो दिखता है वह दिखता है.” इसी कारण बीसीसीआई अपना एक स्पॉन्सर 358 करोड़ के ऊपर ही रखता है, जिसके चलते भारतीय क्रिकेट टीम को स्पॉन्सर करना बहुत ही महंगा सौदा है |
Amul की नई रणनीति
इस T20 वर्ल्ड कप में अमूल ने यूएसए, श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका जैसी टीमों को स्पोंसर करने का फैसला किया। यह निर्णय उनकी परंपरागत सोच से हटकर है, लेकिन इसके पीछे की रणनीति काफी दिलचस्प है। अमूल के मैनेजमेंट का मानना है कि भारतीय क्रिकेट टीम के साथ स्पोंसरशिप करना एक बेहद महंगा सौदा है। भारतीय क्रिकेट टीम के साथ स्पोंसरशिप के लिए बीसीसीआई ने न्यूनतम बोली 358 करोड़ रुपये रखी थी, जिसे Amul ने जीतने की बजाय अन्य देशों की टीमों की ओर रुख किया।
Amul का बिजनेस अप्रोच
Amul की इस रणनीति के पीछे का मुख्य कारण यह है कि 358 करोड़ में भारतीय टीम या 8 करोड़ में 3 टीम, यूएसए, श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका जैसी टीमों के साथ स्पोंसरशिप करना भारतीय टीम की तुलना में सस्ता है। यूएसए के स्टार खिलाड़ी सौरभ नेत्रावलकर, जो Oracle में सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी हैं, के लिए स्पोंसरशिप की लागत बहुत कम है। इस तरह, अमूल ने अपनी ब्रांड जागरूकता फैलाने के लिए कई टीमों के साथ जुड़ने का निर्णय लिया।
नंदनी की रणनीति
अमूल के अलावा, कर्नाटक का प्रसिद्ध स्टार्टअप नंदनी भी इंडिया को छोड़ कर आयरलैंड और स्कॉटलैंड जैसी टीमों को स्पोंसर कर रहा है। यह रणनीति भी लगभग अमूल जैसी ही है, जिसमें कम लागत में ज्यादा टीमों के साथ जुड़ने की कोशिश की जा रही है।
अंतरराष्ट्रीय मार्केट में पैर जमाने की कोशिश
Amul और नंदनी का यह कदम केवल पैसे की बचत के लिए नहीं है, बल्कि इसका एक बड़ा उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय मार्केट में अपनी पहचान बनाना भी है। भारत में पहले से ही मजबूत पकड़ रखने वाले ये ब्रांड अब विदेशों में भी अपने उत्पादों की पहचान बना रहे हैं। यूएसए, श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में स्पोंसरशिप के जरिए वे अपने ब्रांड को वहां की जनता के बीच भी लोकप्रिय बना रहे हैं।
स्पॉन्सरशिप का व्यावहारिक पक्ष
स्पॉन्सरशिप की इस रणनीति के पीछे एक और महत्वपूर्ण पहलू है, और वह है ब्रांड की व्यावहारिकता। जब अमूल जैसी बड़ी कंपनी श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका और यूएसए जैसी टीमों को स्पोंसर करती है, तो उन्हें वहां की लोकल मार्केट में भी पैठ बनाने का अवसर मिलता है। इसके अलावा, वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में भाग लेने वाली टीमों के जरिए उनका ब्रांड एक वैश्विक स्तर पर प्रमोट होता है।
ब्रांड की वैश्विक पहचान
Amul और नंदनी का यह कदम केवल क्रिकेट स्पोंसरशिप तक सीमित नहीं है। यह उनके ब्रांड की वैश्विक पहचान बनाने की एक महत्वपूर्ण रणनीति है। जब ये ब्रांड अंतरराष्ट्रीय टीमों के साथ जुड़ते हैं, तो उन्हें उन देशों में अपनी प्रोडक्ट्स को प्रमोट करने का भी अवसर मिलता है। इससे उनकी बिक्री और मुनाफे में भी वृद्धि होती है।
स्पॉन्सरशिप का भविष्य
Amul और नंदनी जैसी कंपनियों की यह रणनीति भविष्य में और भी अधिक कंपनियों को प्रेरित कर सकती है। जब कंपनियां कम लागत में ज्यादा ब्रांड प्रमोशन पा सकती हैं, तो वे भी इसी दिशा में कदम बढ़ा सकती हैं। यह स्पॉन्सरशिप का एक नया दौर हो सकता है, जिसमें कंपनियां अंतरराष्ट्रीय मार्केट में अपनी पहचान बनाने के लिए इस तरह की रणनीति अपनाएंगी।
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Amul और नंदनी के इस फैसले से स्पष्ट है कि स्पॉन्सरशिप केवल पैसे का खेल नहीं है, बल्कि यह एक गहरी और सटीक बिजनेस स्ट्रेटेजी भी है। इन ब्रांड्स ने भारतीय मार्केट में अपनी पकड़ बनाने के बाद अब अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भी पैर जमाने का फैसला किया है। इसके पीछे का मकसद केवल ब्रांड प्रमोशन नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाना और अधिक मुनाफा कमाना भी है। स्पॉन्सरशिप के इस नए दौर में, हमें यह देखना होगा कि और कितनी कंपनियां इस रणनीति को अपनाकर अंतरराष्ट्रीय मार्केट में अपनी पहचान बनाती हैं।