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सेंगोल पर सियासत गर्म: क्या संसद से हटेगा भारतीय संस्कृति का प्रतीक?

आरके चौधरी का बड़ा बयान संसद से सेंगोल हटाने का क्या है कारण
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समाजवादी पार्टी ने संसद भवन से सेंगोल को हटाने के लिए पत्र लिखा

नमस्कार दोस्तों, कैसे हैं आप सब? आशा करते हैं आप सब बहुत अच्छे होंगे। जब से नई सरकार का गठन हुआ है और नए सांसदों ने अपना-अपना शपथ ग्रहण किया है, तब से संसद भवन में एक के बाद एक विवाद हो रहे हैं। चाहे वह किसी का “जय पलेस्तीन” बोलने पर विवाद हो या “जय संविधान” बोलने पर। इसी क्रम में, लोकसभा के अध्यक्ष श्री ओम बिरला भी अपने नए अवतार को लेकर काफी चर्चित रहे हैं।

अब एक नई खबर आ रही है कि संसद भवन में फिर से हंगामा हो चुका है। इस बार समाजवादी पार्टी के नेता ने संसद भवन से सेंगोल को हटाने की मांग की है। आइए, जानते हैं इस खबर की पूरी जानकारी।

सेंगोल की स्थापना और उसका महत्व

जब नई संसद का उद्घाटन हुआ था, तब उसमें सेंगोल भी स्थापित किया गया था। यह सेंगोल तमिलनाडु से लाया गया था, जो भारतीय और तमिल संस्कृति का प्रतीक है और सत्य का प्रतीक माना जाता है। लेकिन अब समाजवादी पार्टी के सांसद आरके चौधरी ने प्रोटेम स्पीकर को पत्र लिखकर मांग की है कि संसद से सेंगोल हटाया जाना चाहिए और वहां संविधान की एक प्रति लगाई जानी चाहिए क्योंकि यह राजशाही का प्रतीक है, जबकि देश में लोकतंत्र का राज है।

बीजेपी का कहना है कि सेंगोल हटाने की मांग करके समाजवादी पार्टी ने भारतीय संस्कृति का अपमान किया है।

सेंगोल है क्या और इसका महत्व क्या है?

सेंगोल एक तमिल शब्द है जिसका अर्थ है “शासन का प्रतीक”। यह एक प्रकार का राज दंड है जिसे प्राचीन दक्षिण भारतीय राजाओं द्वारा सत्ता और न्याय का प्रतीक माना जाता था। सेंगोल का उपयोग सत्ता के हस्तांतरण के समय एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान के रूप में किया जाता था, खासकर चोल साम्राज्य के दौरान। सेंगोल का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व इस प्रकार है:

  1. प्रतीकात्मकता: सेंगोल का उपयोग नए राजा को सत्ता सौंपने के समय किया जाता था, जिससे यह सुनिश्चित होता था कि नया शासक न्यायपूर्ण और धर्म के अनुसार शासन करेगा।
  2. शक्ति का हस्तांतरण: इसे सत्ता के शांतिपूर्ण और वैध हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता था।
  3. अनुष्ठान: सेंगोल को धार्मिक अनुष्ठानों और समारोह के दौरान भी उपयोग किया जाता था, जहां ब्राह्मण इसे सौंपते थे और राजा इसे स्वीकार करते थे।

आजकल सेंगोल भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण विषय है और इसे दक्षिण भारतीय इतिहास में सत्ता और शासन की परंपराओं को समझने के लिए उपयोग किया जाता है।

सेंगोल के हटाए जाने की मांग पर समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव का क्या कहना है?

अखिलेश यादव जी का मानना यह है कि सेंगोल को जब नई संसद में लगाया गया था तो प्रधानमंत्री जी ने वकायदा उसे प्रणाम किया था, लेकिन इस बार जब प्रधानमंत्री की शपथ ग्रहण कर रहे थे, तो उन्होंने उसे प्रणाम करना भूल गए। इसी को लेकर समाजवादी पार्टी के सांसद को ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री जी के मन में कुछ खोट है और अब वह तानाशाह और राजशाही के तरफ चल चुके हैं। समाजवादी पार्टी के सांसद का यह मानना है कि हमारा देश लोकतंत्र है और सेंगोल राजशाही का प्रतीक है, इसलिए उसे संसद भवन से हटना चाहिए।

सेंगोल को म्यूजियम में रखो, संसद में नहीं

आरजेडी की सांसद मिसा भारती ने कहा कि सेंगोल को बिल्कुल हटाना चाहिए क्योंकि यह लोकतंत्र है, राजतंत्र अब रहा नहीं। सेंगोल राजतंत्र का प्रतीक है और इसे म्यूजियम में लगाया जाना चाहिए जहां लोग जाकर इसका दर्शन कर सकें। जिसने भी यह मांग की है उसने बहुत अच्छी मांग की है और हम उनके साथ हैं।

सेंगोल के हटाए जाने से तमिलनाडु और उसकी संस्कृति का अपमान होगा?

मिसा भारती का कहना है कि नहीं, बिल्कुल भी अपमान नहीं होगा। हमारे देश के नेशनल म्यूजियम में ऐसे हजारों-लाखों चीजें हैं जो अलग-अलग राज्यों का प्रतीक हैं और उन्हें म्यूजियम में रखा गया है, तो इसमें किसी भी राज्य का अपमान नहीं है।

वहीं अगर हम पक्ष के नेताओं की बात करें, तो उनका क्या कहना है इस पर-

के. अन्नामलाई कहते हैं कि संसद से सेंगोल को कोई नहीं हटा सकता।

चिराग पासवान का कहना है कि सेंगोल सत्य, भारतीय और तमिल संस्कृति का प्रतीक है और इसे नहीं हटाया जा सकता।

सेंगोल को संसद भवन से हटाए जाने पर लोगों की प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर काफी विवाद हो रहा है और सभी अपनी-अपनी बात रख रहे हैं। विपक्ष के नेता द्वारा सेंगोल को हटाने की मांग के बाद से सोशल मीडिया पर एक जंग सी छिड़ गई है। कई लोगों का यह मानना है कि-

आज सेंगोल को हटाना चाहते हैं संसद से, कल कहेंगे कि श्री राम का चित्र भी हटाइए संविधान से क्योंकि यह लोकतांत्रिक नहीं है, परसों राम मंदिर को गिराएंगे क्योंकि वह लोकतांत्रिक नहीं है, फिर काशी विश्वनाथ और फिर महाकाल लोक। ये लोग देश, धर्म, और संस्कृति के विरोधी हैं, भारत के विरोधी हैं।

सोशल मीडिया पर एक यूजर लिखते हैं कि-

हे भारत के विपक्ष, माना तुम खलिहर हो पर “राजा का डंडा” नहीं है सेंगोल, भारत की स्वतंत्रता का वह प्रतीक है जिसे तुष्टीकरण के लिए नेहरू ने कर दिया था दफन।

वहीं एक दूसरे यूजर लिखते हैं कि- इन समाजवादियों को हर चीज से इतनी तकलीफ क्यों होती है? इससे पहले तो किसी को सेंगोल से कोई तकलीफ नहीं थी। नाम है समाजवादी, लेकिन काम सिर्फ समाजवाद के विरोध का करते हैं। अगर यह राजशाही का प्रतीक है तो इसमें बुरा क्या है? इस प्रेरणा लेकर सब राजशाही कार्य करें।

वहीं कुछ विपक्ष के चाहने वाले लोगों का मानना है कि सेंगोल का कोई आधिकारिक महत्व नहीं है, वह सिर्फ दिखावा है। एक यूजर लिखते हैं कि सेंगोल हटाने की मांग जायज है क्योंकि सेंगोल सनातन धर्म में न्याय का प्रतीक है। तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित तमिल विश्वविद्यालय में पुरातत्व के प्रोफेसर एस राजावेलु के अनुसार, तमिल में सेंगोल का अर्थ है न्याय। तमिल राजाओं के पास यह सेंगोल होते थे जिसे अच्छे शासन का प्रतीक माना जाता था। जब भारत एक सेक्युलर देश है, तो फिर वहां संविधान ही होना चाहिए, सेंगोल नहीं।

इसी का जवाब देते हुए एक यूजर लिखते हैं कि अगर आपके अनुसार सेंगोल न्याय का प्रतीक है, तो उसे संसद में रखा जाना अनुचित क्यों है? भाजपा हिंदुत्व आदि पार्टी होने के कारण, उन्हें जो भी काम हिंदू हित में और हिंदू के अनुसार करना होता है, उस सभी कामों का विरोध करना समाजवादियों की फितरत रही है। वही काम वो करेंगे।

एक यूजर लिखते हैं कि अगर सेंगोल न्याय का प्रतीक है, तो हटाकर क्या अन्याय बैठाना चाहिए?

वहीं एक दूसरा यूजर लिखते हैं कि मोदी की मनमानी नहीं चलेगी, नहीं चलेगी।

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निष्कर्ष

समाजवादी पार्टी द्वारा संसद भवन से सेंगोल को हटाने की मांग ने भारतीय राजनीति में एक नई बहस को जन्म दिया है। सेंगोल का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व इसे भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है। जबकि कुछ लोग इसे राजशाही का प्रतीक मानते हैं, अन्य इसे भारतीय संस्कृति और न्याय का प्रतीक मानते हैं। इस मुद्दे पर विभाजित राय यह दर्शाती है कि भारतीय समाज में सांस्कृतिक प्रतीकों की महत्वपूर्ण भूमिका है और उन्हें हटाने या बनाए रखने के निर्णय में भावनाओं और धारणाओं का भी बड़ा हिस्सा होता है। संसद में सेंगोल की उपस्थिति या अनुपस्थिति पर निर्णय लेना सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, इतिहास, और लोकतंत्र के मूल्यों से भी जुड़ा हुआ है।

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