लखनऊ में 8वीं मोहर्रम पर निकलेगा अलम-ए-फातेह फुरात का जुलूस, रात 8 बजे होगी मजलिस
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से इस वक्त की बड़ी खबर निकलकर आ रही है जहां बताया जा रहा है कि राजधानी लखनऊ में 8वीं मोहर्रम पर अलम-ए-फातेह फुरात का जुलूस निकाला जाएगा। रात 8 बजे मजलिस होगी।
आपको बता दें कि लखनऊ में सोमवार को 8वीं मोहर्रम पर अलम-ए-फातेह फुरात का जुलूस दरिया वाली मस्जिद से निकलेगा। पैगम्बर मोहम्मद साहब के छोटे नवासे हज़रत इमाम हुसैन और उनके 72 साथी कर्बला में शहीद हुए थे। उनकी याद में शहर के प्रमुख मार्गों और चैराहों पर सबील (प्याऊ) लगाई जाएगी।
साथ ही कई कार्यक्रम, मजलिस और जुलूस का आयोजन होगा। अलम-ए-फातेह फुरात का जुलूस लश्करे हुसैनी के अलमदार हजरत अब्बास की याद में निकाला जाता है। जुलूस से पूर्व मौलाना कल्बे जव्वाद रात 8 बजे मजलिस पढ़ेंगे, उसके बाद जुलूस रवाना होगा। इस जुलूस के आगे अज़ादार मशाले लेकर चलते हैं।
8 मोहर्रम से ( मोहर्रम का आठवां दिन) लेकर 10 मोहर्रम (यौमे आशूरा) तक तमाम अज़ादार और हज़रत इमाम हुसैन के मानने वाले नंगे पांव ( बिना जूता-चप्पल) मजलिसों में शामिल होते हैं। शहर में होने वाली प्रमुख मजलिसों में हज़रतगंज स्थित सादात अली खान मकबरा की मजलिस, छोटे इमामबाड़ा की मजलिस और इमामबाड़ा गुफरांमआब की मजलिस शामिल है। इसके अलावा शिया समुदाय के लोग प्रतिदिन अपने घरों में मजलिस का आयोजन करते हैं।
मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना माना जाता है। मुहर्रम इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख दिन है। इस मौके पर ताजिये यानी मोहर्रम का जुलूस निकाला जाता है। इस दिन शिया मुसलमान इमामबाड़ों में जाकर मातम मनाते हैं और ताजिया निकालते हैं। इसी क्रम में लखनऊ स्थित बड़ा इमामबाड़ा में शनिवार रात को मोहर्रम के छठे दिन आग का मातम हुआ। इसमें बड़ी संख्या में लोग आग के शोलों पर चलते हुए या हुसैन के नारा लगाते हुए नजर आए हैं।
इसको लेकर ऐशबाग ईदगाह के मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने एलान किया कि 8 जुलाई को मोहर्रम की पहली तारीख होगी और यौम ए आशूरा 17 जुलाई को होगा। मुहर्रम की 10वीं तारीख को यौम-ए-आशूरा होता है, जो इस साल 17 जुलाई को होगा। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार कर्बला में एक युद्ध के दौरान इस दिन हजरत मुहम्मद के नवासे (नाती) हजरत हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद हो गए थे। इसमें उनके 6 महीने के पुत्र हजरत अली असगर भी शामिल थे। तभी से मुसलमान इस महीने में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का गम मनाकर उन्हें याद करते हैं।
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शिया समुदाय के लोग पहली मोहर्रम से ही अफसोस और गम मनाना शुरू कर देते हैं। पूरे मोहर्रम में मजलिस, मातम और जुलूस निकलता है। पहली मोहर्रम को शाही जरी का जुलूस निकलता है। फिर 5 मोहर्रम यानी मोहर्रम के पांचवे दिन शाहनजफ में आग का मातम मनाया जाता है। छठे मोहर्रम को बड़े इमामबाड़े में आग पर चलकर मातम मनाया जाता है जो शनिवार को हो गए है और अब 8वीं मोहर्रम पर अलम-ए-फातेह फुरात का जुलूस निकाला जाएगा।
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