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आपातकाल 1975 और संविधान हत्या दिवस: भारतीय लोकतंत्र के अंधेरे दौर की याद

1975 आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के सबसे अंधेरे दौर की अनसुनी कहानियां
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आपातकाल 1975 और संविधान हत्या दिवस: भारतीय लोकतंत्र के अंधेरे दौर की याद

भारत में आपातकाल का समय, जो 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक चला, भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का एक अत्यंत विवादास्पद और महत्वपूर्ण अध्याय है। इस अवधि के दौरान, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की, जिससे देश के नागरिक अधिकार और स्वतंत्रता सीमित हो गई। इस अवधि को याद करने और इससे सीख लेने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 25 जून को “संविधान हत्या दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।

संविधान हत्या दिवस: क्या है और क्यों मनाया जायेगा ?

संविधान हत्या दिवस का उद्देश्य उन काले दिनों को याद करना है जब लोकतंत्र को कुचल दिया गया था और नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया गया था।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्विटर पर लिखा, “25 जून 1975 को, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तानाशाही मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए देश पर आपातकाल थोप दिया। लाखों लोगों को बिना किसी अपराध के जेल में डाल दिया गया और मीडिया की आवाज को दबा दिया गया।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस अवसर पर ट्वीट किया, “25 जून को #संविधानहत्यादिवस के रूप में मनाना इस बात की याद दिलाएगा कि जब भारतीय संविधान को रौंदा गया था, और उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि देने का दिन होगा जिन्होंने आपातकाल की अत्याचार झेली।”

आपातकाल की पृष्ठभूमि और प्रभाव

आपातकाल की घोषणा के पीछे प्रमुख कारणों में से एक था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला, जिसमें इंदिरा गांधी को चुनावी धांधली का दोषी पाया गया और उनके चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया। इस फैसले के बाद, सत्ता में बने रहने के लिए इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू कर दिया। इसके परिणामस्वरूप:

  • नागरिक अधिकार और स्वतंत्रताएं निलंबित कर दी गईं।
  • राजनीतिक विरोधियों को बड़े पैमाने पर गिरफ्तार किया गया।
  • प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया गया।
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया।

आपातकाल के दौरान उठाए गए कदम

आपातकाल के दौरान सरकार ने कई तानाशाही कदम उठाए। इनमें से कुछ प्रमुख कदम थे:

  • प्रेस सेंसरशिप: मीडिया को सरकार की आलोचना से रोका गया और केवल सरकारी विज्ञप्ति प्रकाशित करने की अनुमति दी गई।
  • विरोधियों की गिरफ्तारी: सरकार के विरोध में उठने वाली हर आवाज को दबाने के लिए बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की गईं।
  • जनसंख्या नियंत्रण: आपातकाल के दौरान जबरन नसबंदी अभियान चलाया गया, जिससे व्यापक जन आक्रोश उत्पन्न हुआ।

संविधान हत्या दिवस का महत्व

संविधान हत्या दिवस का उद्देश्य आपातकाल के दौरान हुए अत्याचारों और लोकतंत्र के खिलाफ हुए हमलों को याद करना है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करना हर नागरिक का कर्तव्य है। यह दिन उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि देने का भी है जिन्होंने आपातकाल के दौरान साहसपूर्वक संघर्ष किया और लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया।

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संविधान हत्या दिवस एक महत्वपूर्ण अवसर है जब हम अतीत की गलतियों से सीख सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि भविष्य में ऐसा कोई भी घटना न हो। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि लोकतंत्र की रक्षा करना और संविधान के प्रति निष्ठावान रहना हर नागरिक का परम कर्तव्य है।

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