उत्तर प्रदेश की राजधानी Lucknow से एक बड़ी खबर सामने आ रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण निर्णय पारित करते हुए रीति के बिना हुए विवाह पर जारी प्रमाण पत्र को अमान्य घोषित कर दिया है। इस निर्णय का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है, क्योंकि यह धार्मिक और कानूनी दोनों पहलुओं को ध्यान में रखकर लिया गया है।
मामले का पृष्ठभूमि
इस मामले में एक 18 वर्षीय युवती और 39 वर्षीय कथित धर्मगुरु शामिल थे। युवती ने आरोप लगाया था कि धर्मगुरु ने धोखाधड़ी कर उसके साथ विवाह किया था। युवती के अनुसार, उसे और उसकी मां को धर्मगुरु ने अपने धार्मिक संस्थान का नियमित सदस्य बनाने के बहाने कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवा लिए थे। इसके बाद, धर्मगुरु ने दावा किया कि पांच जुलाई 2009 को उनका विवाह आर्य समाज मंदिर में हो गया था और 3 अगस्त 2009 को उसका पंजीकरण भी हो चुका है।
कोर्ट का निर्णय
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि हिंदू विवाह में हिंदू रीतियों का पालन अनिवार्य है। अगर विवाह में हिंदू रीति-रिवाजों का पालन नहीं किया गया है, तो ऐसे विवाह का प्रमाण पत्र अमान्य माना जाएगा। कोर्ट ने युवती की ओर से दाखिल प्रथम अपील को मंजूर करते हुए कथित विवाह को शून्य घोषित कर दिया। इस मामले की सुनवाई जस्टिस राजन राय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने की।
कानूनी प्रक्रिया
युवती ने परिवार न्यायालय Lucknow के 29 अगस्त 2023 के निर्णय को चुनौती दी थी। परिवार न्यायालय ने युवती के वाद को निरस्त कर दिया था, जबकि प्रतिवादी धर्मगुरु के वाद को मंजूर कर लिया गया था। युवती ने हाईकोर्ट में अपील की कि परिवार न्यायालय का आदेश गलत है और उसका विवाह शून्य घोषित किया जाए। हाईकोर्ट ने युवती के पक्ष में फैसला सुनाते हुए विवाह को अमान्य करार दिया।
धोखाधड़ी के आरोप
युवती की दलील थी कि धर्मगुरु ने उसे और उसकी मां को धार्मिक संस्थान का सदस्य बनाने के बहाने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवा लिए थे। इसके बाद, धर्मगुरु ने दावा किया कि उनका विवाह हो चुका है। युवती ने आरोप लगाया कि सभी दस्तावेज धोखाधड़ी से बनाए गए हैं। कोर्ट ने यह पाया कि विवाह को सिद्ध करने का भार प्रतिवादी धर्मगुरु पर था, लेकिन वह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-7 के तहत हिंदू रीति-रिवाज से विवाह होना सिद्ध नहीं कर सका।
सामाजिक और कानूनी प्रभाव
इस निर्णय का सामाजिक और कानूनी प्रभाव काफी महत्वपूर्ण है। यह स्पष्ट करता है कि विवाह प्रमाण पत्र तभी मान्य होंगे जब विवाह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ हो। यह फैसला उन मामलों के लिए भी मिसाल बनेगा जहां विवाह धोखाधड़ी और बिना रीतियों के होते हैं।
कोर्ट का निर्देश
कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि विवाह प्रमाण पत्र जारी करने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि विवाह सही तरीके से और सभी धार्मिक रीतियों का पालन करते हुए हुआ है। इससे विवाह प्रमाण पत्र की वैधता सुनिश्चित हो सकेगी और धोखाधड़ी के मामलों में कमी आएगी।
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Lucknow High Court का यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी इसे अहम माना जा रहा है। यह निर्णय समाज को एक संदेश देता है कि विवाह जैसे पवित्र बंधन को धोखाधड़ी और छल से बचाना आवश्यक है। अदालत के इस फैसले से उन सभी लोगों को न्याय मिलेगा जिन्होंने अपने जीवन में इस प्रकार की धोखाधड़ी का सामना किया है।
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